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तव॑ श्रि॒या सु॒दृशो॑ देव दे॒वाः पु॒रू दधा॑ना अ॒मृतं॑ सपन्त। होता॑रम॒ग्निं मनु॑षो॒ नि षे॑दुर्दश॒स्यन्त॑ उ॒शिजः॒ शंस॑मा॒योः ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tava śriyā sudṛśo deva devāḥ purū dadhānā amṛtaṁ sapanta | hotāram agnim manuṣo ni ṣedur daśasyanta uśijaḥ śaṁsam āyoḥ ||

पद पाठ

तव॑। श्रि॒या। सु॒ऽदृशः॑। दे॒व॒। दे॒वाः। पु॒रु। दधा॑नाः। अ॒मृत॑म्। स॒प॒न्त॒। होता॑रम्। अ॒ग्निम्। मनु॑षः। नि। से॒दुः॒। द॒श॒स्यन्तः॑। उ॒शिजः॑। शंस॑म्। आ॒योः ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:3» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:16» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब प्रजाकृत्य को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) दानशील राजन् ! (तव) आपकी (श्रिया) लक्ष्मी वा शोभा से (सुदृशः) उत्तम प्रकार देखने और (पुरू) बहुत (अमृतम्) मृत्युरहित अर्थात् अविनाशी पदवी को (दधानाः) धारण करते और (उशिजः) कामना करते हुए (आयोः) जीवन के (शंसम्) कहाने और (होतारम्) ग्रहण करनेवाले (अग्निम्) अग्नि को (दशस्यन्तः) विस्तारते हुए (देवाः) विद्वान् (मनुषः) मनुष्य (सपन्त) आक्रोशी रहे अर्थात् चिल्ला-चिल्ला उसका उपदेश दे रहे हैं, वे मृत्युरहित पदवी को (नि, षेदुः) प्राप्त होवें ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! आप यथार्थवक्ता विद्वानों के सङ्ग से विद्याओं को ग्रहण कर लक्ष्मीवान् हों और इस संसार में सुख भोगकर अन्त अर्थात् मरणसमय में मुक्ति को भी प्राप्त होओ ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्रजाकृत्यमाह ॥

अन्वय:

हे देव ! राजंस्तव श्रिया सुदृशः पुर्वमृतं दधाना उशिज आयोः शंसं होतारमग्निं दशस्यन्त देवा मनुषः सपन्त तेऽमृतं नि षेदुः ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तव) (श्रिया) शोभया लक्ष्म्या वा (सुदृशः) ये सुष्ठु पश्यन्ति (देव) दातः (देवाः) विद्वांसः (पुरू) बहु (दधानाः) धरन्तः (अमृतम्) मृत्युरहितम् (सपन्त) आक्रोशन्ति (होतारम्) आदातारम् (अग्निम्) पावकम् (मनुषः) मनुष्याः (नि, षेदुः) निषीदेयुः (दशस्यन्तः) विस्तारयन्तः (उशिजः) कामयमानाः (शंसम्) शंसन्ति येन तम् (आयोः) जीवनस्य ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यूयमाप्तानां विदुषां सङ्गेन विद्यां सङ्गृह्य श्रीमन्तो भूत्वेह सुखं भुक्त्वाऽन्ते मुक्तिमपि लभध्वम् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! तुम्ही आप्त विद्वानांच्या संगतीने विद्या संपादित करून धनवान बना. या जगात सुख भोगून मृत्यूसमयी मुक्तीही प्राप्त करा. ॥ ४ ॥